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अन्हरिया- कांचीनाथ झा ‘किरण’

In अन्हरिया,कांचीनाथ झा ‘किरण’ on मे 2, 2009 at 10:18 अपराह्न

की रविकर प्रहार पीड़ित धराक

निवास धूम भरि रहल व्योम?

की रविपतिक अस्त

लखि, भयें त्रास्त

तिमिर चीर

झाँपल शरीर

अवनी अनाथिनी

की रवि दूर गेल

शशि अन्ध भेल

बुझि, अन्धकार

पटकेर ओहार

लगा, व्योम संग विहार

करैत अछि वसुधा भएकाकार?

की कारी कोसी अछि उत्फाल भेल

तकरे जलसँ करैछ

भू-नभकें एकाकार?

की निसि रमैत अछि कलिक संग

तें भेल एकर अछि कृष्ण रंग?

झड़ैत खुदिया खद्योत भास

उड़ैत चमकी उडुगण प्रकास?

मानव समाजमे वर्ण भेद

सुरुहेसँ अनलक अहंकार

करैत आएल अछि अनाचार अत्याचार

तेंॅ तकरा मेटबै लेल

दलित उपेक्षित मानव जातिक हृदय-वह्नि गिरिसँ

समुभूत तामस तमोपुंज

बढ़ि रहल भरैत अम्बर दिगदिगन्त?

की कांग्रेसी शासनगत अनाचार

अन्धकार बनि अछि व्यक्त भेल?

की अणुबमक पहाड़

देखि मानव जातिक भविष्य

साकार थिक ई अन्धकार?