छौंड़ा गहुमन सन सनसना उठै छै
छौंड़ी माचिस सन फनफना उठै छै
शांति लै बुद्ध ध्यानस्थ तैखन कान नारा सब गनगना उठै छै
संतुलन शीत-तापक ने सम्हरै आंखि तेँ खूब बनबना उठै छै
ब्याह एक्कर, पिता करथिन सौदा से सुनैए कि हनहना उठै छै
देखि खद्धर मे माधो-वीरप्पन तार नस-नस के झनझना उठै छै
अनटोटल सँ टोटल एलर्जी तेँ तँ भनभना आ रनरना उठै छै
ई के अछि बुढ़िया नील ओछाओन पर सूतलि
पसारने अपन केशराशि चतुर्दिक
डूबलि अतीतक निन्न मे
-अखन धरि निसभेर
अस्फुट शब्देँ बाजि रहलि अछि
-कोन कथा बेर-बेर?
तूहें कहियो-काल जेल स’ निकलबो करबही,
हम्में कोसी-बान्ह टुटलै त’ फाँसी-रे-फाँसी।
तोरा पूस मास के दिन मे तरेगन लखा जाइ छै
मोरा बारहो महीना मे तेरहम महिनमा
कतिका मास लखा दै छै भैय्या मोरे!
मोरा बान्ह टूटै के आदंक फा मे देलकै सरकार
तोरा हमरा नामें ईर्खा फा मे देलकै सरकार।
तोंहे रिलीफ के ओस चाटहो विला गेलौ
मेहनति के संस्कार, हमरा बैंक लोन नै देलको,
जिनगी भेलै पहाड़।
हौ बाबा कारू खिड़हरि,
हौ बाबा सोखा! हौ बाबा लछमी गोसाँय!
लए जाहो कोसी, लए जाहो बान्ह के
हमरा ने जिनगी पड़ै छै पोसाय।
गगनसं खसल शीत सम बूझी
जुनि कनिओं इतराइ।
वटवृक्षक छहरि सन शीतल,
रखने जे प्रभुताइ।
मेटा लैछ अस्तित्व अपन,
ओहि तरमे सभ बनराइ।
सागर सन कायामे कखनहु,
जं उफनए आक्रोश।
निधि तट पर बैसल दम्पति केर,
प्रणयने बुझए अताइ।
फांकथि तण्डुल कण पोटरीसं,
मुदित होथि दुहू मीत।
तेहेन बचल नहि कृष्ण एकहुटा,
विवश सुदामा भाइ।